जैन धर्म | भारतीय इतिहास (Indian History)
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जैन धर्म
जैन धर्म | भारतीय इतिहास (Indian History)
जैन धर्म
- जैन धर्म के संस्थापक तथा पहले तीर्थंकर ऋषभदेव जी को माना जाता है।
- तीर्थंकर से तात्पर्य "सही राह दिखाने वाला"
- ऋषभदेव जी के बाद 23 तीर्थंकर और हुए जिन्होंने जैन धर्म को आगे बढ़ाया।
- इन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों को लोगों तक पहुंचाया।
- ऋषभ देव जी के पुत्र भगवान बाहुबली थे, जिनकी मूर्ति गंग शासक चामुंडराय के मंत्री रणमल द्वारा श्रवणबेलगोला की पहाड़ियों में लगभग 960 ईस्वी में स्थापित करवाई गई।
पार्श्वनाथ जी
- जन्म 850 ई
- वाराणसी में एक इक्ष्वांक कुल के राजा अश्वसेन सेन पिता, माता वामा थी।
चार अणुव्रत
- अहिंसा, हिंसा रहित जीवन यापन
- अपरिग्रह, जमाखोरी नहीं करना
- आचोर्य, चोरी नहीं
- असत्य नहीं बोलना
पार्श्वनाथ जी को 100 वर्ष की आयु में सम्मेद पर्वत ( गिरीडीह, जिला झारखण्ड) में निर्माण प्राप्त हुआ।
यह समय तथा उनके अनुयाई निर्गन्थ कहलाते थे।
महावीर स्वामी
- जन्मसे संबंधित जानकारी
- 599 ईसा पूर्व, श्वेतांबर
- 50082 ईसा पूर्व , दिगंबर
- 540 ईसा पूर्व , ऐतिहासिक साक्ष्य
मृत्यु से संबंधित जानकारी
- 527 ईसा पूर्व
- 510 ईसा पूर्व
- 468 ईसा पूर्व
- महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ ( ज्ञातृक कुल) था।
- महावीर स्वामी की माता का नाम त्रिशला ( वैशाली के राजा चेटक की बहन ) था।
- महावीर स्वामी के बचपन का नाम वर्धमान था।
- इनका विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से हुआ ।
- महावीर स्वामी कोयशोदा से अणुजा अथवा प्रियदर्शनीनमक पुत्री प्राप्त हुई ।
- महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में सत्य की खोज हेतु गृह त्याग कर दिया ।
- 12 वर्ष की कठोर तपस्या के पश्चात इन्हें ऋजुपालिका नदी के तट पर सर्वोच्च ज्ञान (केवल्य) प्राप्त हुआ ।
- इस प्रकार महावीर स्वामी केवोलीन कहलाए ।
महावीर स्वामी के नाम
- महावीर
- केवोलीन
- निर्गन्थ
- जिन ( इंद्रियों पर नियंत्रण कर लिया )
- अर्हन्त ( सर्वाधिक योग्य )
- इन्होंने अपना पहला उपदेश वितुलाचल पर्वत पर दिया था।
- इनका प्रथम शिष्य जामाली था।
- महावीर स्वामी ने पार्श्वनाथ द्वारा दिए गए चार अणुवृतो में पांचवा अणुव्रत ब्रह्मचर्य जोड़ दिया।
- इन्होंने वेदों का खंडन किया
- इन्होंने अपने पूर्व तीर्थंकरों का प्रतिपादन किया ।
- इन्होंने जाति व्यवस्था का समर्थन किया
- 30 वर्ष तक उपदेश दिए तथा 72 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु पावापुर बिहार में हुई
- इन्होंने कर्मों को महत्वता दी
- इंसान अच्छे कर्मों से ही मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है इस प्रकार की जानकारी दी
- इन्होंने अपने उपदेशों में त्रि रत्न दिए
- सम्यक ज्ञान
2 . सम्यक दर्शन
3 . सम्यक चारित्र
- इन्होंने सेन्य कार्य तथा कृषि कार्य करने से मना किया ।
- वर्तमान में जैन धर्म के लोग व्यापार वर्ग में अधिकतर है
- उनके उपदेश की भाषा प्राकृत भाषा है
- उनके मौलिक उपदेशों के 14 अंग है
उनके ग्रंथ
- कल्पसूत्र
- भगवती सूत्र
- आचाराग सूत्र
- त्रिशकटीशलाका
- उवसदगाओ
- पुरुष चरित्र
- भद्रबाहु चरित्र
जैन संगीतियां
उद्देश्य, ग्रन्थों का संकलन
प्रथम जैन संगीति
- 322 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व
- स्थान, पाटलिपुत्र
- राजा , चंद्रगुप्त मौर्य
- अध्यक्ष , स्थूल भद्र
- उपाध्यक्ष , भद्रबाहु
- यह जैन संगीति मौर्य राजा चंद्रगुप्त मौर्य के काल में पाटलिपुत्र में आयोजित की गई ।
- स्थूलभद्र तथा भद्रबाहु दोनों के मध्य विवाद हो गया, इस कारण जैन धर्म दो संप्रदाय में बट गया ।
1 . श्वेतांबर ( सफेद वस्त्र )
- दिगंबर ( निवस्त्र )
दूसरी जैन संगीति
- समय , 512 ईसा पूर्व
- अध्यक्ष, देवत्री क्षमा शरण
- स्थान, वल्लाभी गुजरात
- उद्देश्य , ग्रन्थों का संकलन
सलेखना विधि
सत् + लेखना
जीवन के अंतिम पड़ाव मेंसत्कर्मों का लेखा-जोखा करना
इस प्रथा के तहत उपवास पद्धति से जीवन समाप्त किया जाता है और मृत्यु को प्राप्त कर लिया जाता है
- प्रसिद्ध राजा चंद्रगुप्त मौर्य ने संलेखना विधि से ही अपने प्राण श्रवणबेलगोला पहाड़ी कर्नाटक में अपने प्राण त्याग दिए
- प्रसिद्ध मंत्र, नमोकार मंत्र
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जैन और हिंदू में क्या अंतर है?
- हिंदू धर्म के अनुसार, जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है, अर्थात आत्मा का परमात्मा में विलय। जैन धर्म के अनुसार, जीवन का उद्देश्य आत्मा को बुरे कर्मों से अलग करना और मोक्ष प्राप्त करना है।
जैन कौन से धर्म में आते हैं?
- जैन धर्म भारत श्रमण परम्परा से निकला प्राचीन धर्म और दर्शन है। जैन अर्थात् कर्मों का नाश करनेवाले 'जिन भगवान' के अनुयायी। सिन्धु घाटी से मिले जैन अवशेष जैन धर्म को सबसे प्राचीन धर्म का दर्जा देते है।
जैन धर्म के प्रमुख 3 नियम क्या हैं?
- त्रिरत्न - जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत त्रिरत्न के नाम से जाने जाते हैं । त्रिरत्न के अंतर्गत सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन तथा सम्यक कर्म को गिना जाता है। सम्यक ज्ञान का अर्थ है जैन धर्म और मुक्ति के विषय में संपूर्ण और सच्चा ज्ञान। सम्यक दर्शन का अर्थ होता है तीर्थंकरों में पूर्ण विश्वास करना।
जैन कौन सी जाति में आते हैं?
- जवाब में सरकार के अवर सचिव सह लोक सूचना पदाधिकारी सिद्धनाथ राम ने बताया कि जैन समुदाय किसी जाति विशेष के रूप में अधिसूचित नहीं है। इसके कारण आरक्षित वर्गो से भिन्न श्रेणी के व्यक्ति सामान्य जाति का सदस्य होता है। इसके पूर्व कई जैन समुदाय का जाति प्रमाण पत्र वैश्य के रुप में बना है।
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