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विश्व के प्रमुख धर्म | भारतीय इतिहास (Indian History)
विश्व के प्रमुख धर्म
विश्व के प्रमुख धर्म
विश्व में सभी धर्म की आध्य भूमि एशिया महाद्वीप को कहा जाता है ।
विश्व की सबसे पवित्र भूमि जेरू सलाम को माना गया है क्योंकि विश्व के लगभग बड़े धर्म यहीं से संबंधित है।
इन धर्म में पारसी धर्म , यहूदी धर्म , ईसाई धर्म , इस्लाम धर्म प्रमुख है ।
पारसी धर्म
यह धर्म सन्त जरथ्रुष्ट तथा उनके अनुयायियों द्वारा फैलाया गया ।
पारसियों का प्रमुख धर्म ग्रन्थ जैन अवेस्था है।
इस धर्म के लोग आग को पूजते है
इस धर्म के लोगों की संख्या पहले इराक , ईरान , यूनान तथा मध्य एशिया में अधिक थी ।
अन्य धर्म के उदय के पश्चात यह धर्म केवल यूरोप में ही रह गया ।
नौरोजा या नवरोज इनका प्रमुख त्यौहार है
ईसाई धर्म
इस धर्म का उदय ईसा मसीह के जन्म के साथ हुआ । ईसा मसीह की मां का नाम मरियम था इनका कार्य क्षेत्र येरुशलम था । यहां पर इन्होंनेअपनी पवित्र पुस्तक बाइबल के जरिए धर्म का प्रचार किया वर्तमान में सर्वाधिक ईसाई धर्मावलम्बी है , इनका प्रमुख केंद्र यूरोप है । कालांतर में यह धर्म दो भागों में बट गया
केथोलिक
प्रोटेस्ट
12वीं शताब्दी में पुनर्जागरण की घटना इसी धर्म से हुई
यहुदी धर्म
संत इब्राहिम को मानने वालेयहूदी कहलाए
उनके प्रमुख पैगंबर मूसा को माना जाता है
उनके प्रमुख पवित्र पुस्तक तोराद है।
मूसा का कार्य क्षेत्र इजराइल व मिश्र को माना जाता है ।
यहूदियों के प्रार्थना स्थल सिनानोग कहलाते हैं
इनका वर्तमान संकेन्द्रण इजराइल देश है ।
इस्लाम धर्म
प्रचार प्रसार पैगंबर हजरत मोहम्मद ने किया
इनका जन्म 570 ईस्वी में मक्का शहर (सऊदी अरब )में हुआ
इनके पिता का नाम अब्दुल्ला तथा माता का नाम अमिना था
कुरैश घराने से संबंधित थे।
612 ईस्वी मेंइन्होंने अपने लघुवत का ऐलान किया ।
इस प्रकार यह परम ज्ञानी व्यक्ति कहलाए
इन्होंने बुद्धो को पूजने से मना किया ।
इन्होंने एकेश्वरवाद पर बल दिया ।
इन्होंने व्यक्ति के आत्मबल पर जोर दिया
इन्होंने बताया कि व्यक्ति के कर्म अच्छे होने चाहिए
622 ईस्वी में यह मक्का छोड़कर मदीना गए, इनकी यह यात्रा हिजरत कहलाती है ।
इसी से इस्लामिक हिजरी कैलेंडर की शुरुआत हुई ।
633 ईस्वी में, मदीना में इनकी मृत्यु हुई ।
पवित्र पुस्तक कुरान मस्जिद है
विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद "मस्जिद अल हरम " है।
यह मस्जिद मक्का शहर , सउदी अरब में स्थित है ।
मोहम्मद के उत्तराधिकारी खलीफा कहलाए
कुल चार खलीफा हुए
मुस्लिम लोग इस्लामिक माह रमजान में उपवास रखते हैं ।
जिन्हें रोजा कहा जाता है
इनकी प्रार्थना पद्धति नमाज कहलाती है ।
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दुनिया के 12 प्रमुख धर्म कौन से हैं?
दुनियाभर में धर्मों की संख्या लगभग 300 से ज्यादा होगी, लेकिन व्यापक रूप से 7 धर्म ही प्रचलित हैं हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई, इस्लाम, यहूदी और वुडू।
दुनिया के टॉप 5 धर्म कौन से हैं?
दुनिया का सबसे बड़ा धर्म ईसाई धर्म है, उसके बाद इस्लाम, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म हैं।अन्य प्रमुख धर्मों में सिख धर्म, यहूदी धर्म, बहाई धर्म, जैन धर्म, शिंटो धर्म और पारसी धर्म शामिल हैं।
विश्व में प्रमुख कितने धर्म हैं?
सामान्यतः "विश्व धर्म" कहे जाने वाले छह धर्मों से जुड़े प्रतीक: ऊपर से दक्षिणावर्त, ये यहूदी धर्म , इस्लाम , बौद्ध धर्म , हिंदू धर्म , ताओवाद और ईसाई धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं।
दुनिया में नंबर 1 धर्म कौन सा है?
फिलहाल दुनिया के प्रमुख धर्मों में ईसाई धर्म सबसे बड़ा है, जिसके दो अरब से अधिक अनुयायी हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2020 तक अनुमान के हिसाब से दुनिया में ईसाई धर्म को मानने वाले 2.38 बिलियन यानी करीब 238 करोड़ हैं. जबकि, इस्लाम धर्म के फॉलोअर्स 191 करोड़ हैं.
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जैन धर्म
जैन धर्म | भारतीय इतिहास (Indian History)
जैन धर्म
जैन धर्म के संस्थापक तथा पहले तीर्थंकर ऋषभदेव जी को माना जाता है।
तीर्थंकर से तात्पर्य "सही राह दिखाने वाला"
ऋषभदेव जी के बाद 23 तीर्थंकर और हुए जिन्होंने जैन धर्म को आगे बढ़ाया।
इन्होंने जैन धर्म के सिद्धांतों को लोगों तक पहुंचाया।
ऋषभ देव जी के पुत्र भगवान बाहुबली थे, जिनकी मूर्ति गंग शासक चामुंडराय के मंत्री रणमल द्वारा श्रवणबेलगोला की पहाड़ियों में लगभग 960 ईस्वी में स्थापित करवाई गई।
पार्श्वनाथ जी
जन्म 850 ई
वाराणसी में एक इक्ष्वांक कुल के राजा अश्वसेन सेन पिता, माता वामा थी।
चार अणुव्रत
अहिंसा, हिंसा रहित जीवन यापन
अपरिग्रह, जमाखोरी नहीं करना
आचोर्य, चोरी नहीं
असत्य नहीं बोलना
पार्श्वनाथ जी को 100 वर्ष की आयु में सम्मेद पर्वत ( गिरीडीह, जिला झारखण्ड) में निर्माण प्राप्त हुआ। यह समय तथा उनके अनुयाई निर्गन्थ कहलाते थे।
महावीर स्वामी
जन्मसे संबंधित जानकारी
599 ईसा पूर्व, श्वेतांबर
50082 ईसा पूर्व , दिगंबर
540 ईसा पूर्व , ऐतिहासिक साक्ष्य
मृत्यु से संबंधित जानकारी
527 ईसा पूर्व
510 ईसा पूर्व
468 ईसा पूर्व
महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ ( ज्ञातृक कुल) था।
महावीर स्वामी की माता का नाम त्रिशला ( वैशाली के राजा चेटक की बहन ) था।
महावीर स्वामी के बचपन का नाम वर्धमान था।
इनका विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से हुआ ।
महावीर स्वामी कोयशोदा से अणुजा अथवा प्रियदर्शनीनमक पुत्री प्राप्त हुई ।
महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में सत्य की खोज हेतु गृह त्याग कर दिया ।
12 वर्ष की कठोर तपस्या के पश्चात इन्हें ऋजुपालिका नदी के तट पर सर्वोच्च ज्ञान (केवल्य) प्राप्त हुआ ।
इस प्रकार महावीर स्वामी केवोलीन कहलाए ।
महावीर स्वामी के नाम
महावीर
केवोलीन
निर्गन्थ
जिन ( इंद्रियों पर नियंत्रण कर लिया )
अर्हन्त ( सर्वाधिक योग्य )
इन्होंने अपना पहला उपदेश वितुलाचल पर्वत पर दिया था।
इनका प्रथम शिष्य जामाली था।
महावीर स्वामी ने पार्श्वनाथ द्वारा दिए गए चार अणुवृतो में पांचवा अणुव्रत ब्रह्मचर्य जोड़ दिया।
इन्होंने वेदों का खंडन किया
इन्होंने अपने पूर्व तीर्थंकरों का प्रतिपादन किया ।
इन्होंने जाति व्यवस्था का समर्थन किया
30 वर्ष तक उपदेश दिए तथा 72 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु पावापुर बिहार में हुई
इन्होंने कर्मों को महत्वता दी
इंसान अच्छे कर्मों से ही मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है इस प्रकार की जानकारी दी
इन्होंने अपने उपदेशों में त्रि रत्न दिए
सम्यक ज्ञान 2 . सम्यक दर्शन 3 . सम्यक चारित्र
इन्होंने सेन्य कार्य तथा कृषि कार्य करने से मना किया ।
वर्तमान में जैन धर्म के लोग व्यापार वर्ग में अधिकतर है
उनके उपदेश की भाषा प्राकृत भाषा है
उनके मौलिक उपदेशों के 14 अंग है
उनके ग्रंथ
कल्पसूत्र
भगवती सूत्र
आचाराग सूत्र
त्रिशकटीशलाका
उवसदगाओ
पुरुष चरित्र
भद्रबाहु चरित्र
जैन संगीतियां
उद्देश्य, ग्रन्थों का संकलन
प्रथम जैन संगीति
322 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व
स्थान, पाटलिपुत्र
राजा , चंद्रगुप्त मौर्य
अध्यक्ष , स्थूल भद्र
उपाध्यक्ष , भद्रबाहु
यह जैन संगीति मौर्य राजा चंद्रगुप्त मौर्य के काल में पाटलिपुत्र में आयोजित की गई ।
स्थूलभद्र तथा भद्रबाहु दोनों के मध्य विवाद हो गया, इस कारण जैन धर्म दो संप्रदाय में बट गया ।
1 . श्वेतांबर ( सफेद वस्त्र )
दिगंबर ( निवस्त्र )
दूसरी जैन संगीति
समय , 512 ईसा पूर्व
अध्यक्ष, देवत्री क्षमा शरण
स्थान, वल्लाभी गुजरात
उद्देश्य , ग्रन्थों का संकलन
सलेखना विधि सत् + लेखना जीवन के अंतिम पड़ाव मेंसत्कर्मों का लेखा-जोखा करना इस प्रथा के तहत उपवास पद्धति से जीवन समाप्त किया जाता है और मृत्यु को प्राप्त कर लिया जाता है
प्रसिद्ध राजा चंद्रगुप्त मौर्य ने संलेखना विधि से ही अपने प्राण श्रवणबेलगोला पहाड़ी कर्नाटक में अपने प्राण त्याग दिए
प्रसिद्ध मंत्र, नमोकार मंत्र
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जैन और हिंदू में क्या अंतर है?
हिंदू धर्म के अनुसार, जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है, अर्थात आत्मा का परमात्मा में विलय। जैन धर्म के अनुसार, जीवन का उद्देश्य आत्मा को बुरे कर्मों से अलग करना और मोक्ष प्राप्त करना है।
जैन कौन से धर्म में आते हैं?
जैन धर्म भारत श्रमण परम्परा से निकला प्राचीन धर्म और दर्शन है। जैन अर्थात् कर्मों का नाश करनेवाले 'जिन भगवान' के अनुयायी। सिन्धु घाटी से मिले जैन अवशेष जैन धर्म को सबसे प्राचीन धर्म का दर्जा देते है।
जैन धर्म के प्रमुख 3 नियम क्या हैं?
त्रिरत्न - जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत त्रिरत्न के नाम से जाने जाते हैं । त्रिरत्न के अंतर्गत सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन तथा सम्यक कर्म को गिना जाता है। सम्यक ज्ञान का अर्थ है जैन धर्म और मुक्ति के विषय में संपूर्ण और सच्चा ज्ञान। सम्यक दर्शन का अर्थ होता है तीर्थंकरों में पूर्ण विश्वास करना।
जैन कौन सी जाति में आते हैं?
जवाब में सरकार के अवर सचिव सह लोक सूचना पदाधिकारी सिद्धनाथ राम ने बताया कि जैन समुदाय किसी जाति विशेष के रूप में अधिसूचित नहीं है। इसके कारण आरक्षित वर्गो से भिन्न श्रेणी के व्यक्ति सामान्य जाति का सदस्य होता है। इसके पूर्व कई जैन समुदाय का जाति प्रमाण पत्र वैश्य के रुप में बना है।
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बौद्ध धर्म | भारतीय इतिहास (Indian History)
बौद्ध धर्म
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में धार्मिक आंदोलन हुआ।
इसी समय बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ।
बौद्ध धर्म के तीन प्रमुख अंग माने जाते हैं।
बुद्ध स्वयं
धम्म (उपदेश व नियम)
संघ (प्रचारक संस्था)
महात्मा बुद्ध
जन्म 1563 ई
जन्म स्थान लुंबिनी गांव, कपिलवस्तु के पास।
पिता शुद्धोधन, शाक्य कुल से संबंधित
माता महामाया।
विमाता प्रजापति गौतमी।
पत्नी यशोधरा
पुत्र राहुल
महात्मा बुद्ध ने सत्य की खोज हेतु 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर दिया था।
इस घटना को महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है।
गृह त्याग करते समय उनके साथ इनका घोड़ा कत्थक और सारथी चन्ना साथ था।
गृह त्याग कर यह गुरु अलार कलाम तथा रुद्रक के पास गए।
इनसे संतुष्ट नहीं हुए और स्वयं ही समाधि अवस्था में ज्ञान प्राप्ति का संकल्प लिया।
35 वर्ष की आयु में कठोर तपस्या के पश्चात इन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, इस घटना को संबोधि कहा जाता है। इन्होंने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया। इस घटना को महा धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है।
40 वर्षों तक इन्होंने अपने धर्म का प्रचार किया।
परंतु बसंत माह में विचरण नहीं करते थे।
इन्होंने अपने उपदेश पाली भाषा में दिए।
इस प्रकार आमजन में धर्म का प्रचार हुआ।
महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति बोधगया में हुई।
बोधगया उर्वेल वन में स्थित है।
वर्तमान में यह स्थान बिहार राज्य में स्थित है।
इन्हें पीपल वृक्ष के नीचे वैशाख पूर्णिमा को ज्ञान प्राप्ति हुई।
बुद्ध के धम्म
भगवान महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश को धम्म कहा।
इन्होंने उपदेशों में जीवन की राह बताई।
महात्मा बुद्ध ने चार आर्य सत्य दिए
सर्वत्र दुखम
बुद्ध के अनुसार जीवन में दु:ख ही दु:ख है।
क्षणिक सुखों को सुख मानना अदूरदर्शिता है।
दु:ख समुदाय
बुद्ध के अनुसार दु:ख का कारण तृष्णा अथवा इच्छा है।
इंद्रियों को जो वस्तुएं प्रिय लगती हैं उनको प्राप्त करने की इच्छा ही तृष्णा है और तृष्णा का कारण अज्ञान है
दु:ख निवारण
बुद्ध के अनुसार दु:खों से मुक्त होने के लिए उसके कारण का निवारण आवश्यक है।
तृष्णा पर विजय प्राप्त करने से दुखों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
दुख निवारण मार्ग
बुद्ध के अनुसार दु:खों से मुक्त होने अथवा निर्वाण प्राप्त करने के लिए जो मार्ग है उसे अष्टांगिक मार्ग कहते हैं।
अष्टांगिक मार्ग
सम्यक दृष्टि
सत्य और असत्य को पहचानो।
सम्यक संकल्प
इच्छा एवं हिंसा रहित संकल्प।
सम्यक वाणी
सत्य एवं मृदु वाणी
सम्यक कर्म
सत्कर्म दान अहिंसा दया सदाचार।
सम्यक आजीव
जीवन यापन का सदाचार पूर्ण एवं उचित मार्ग।
सम्यक व्यायाम
विवेकपूर्ण प्रयत्न
सम्यक् स्मृति
अपने कर्मों के प्रति विवेकपूर्ण ढंग से सहज रहना।
सम्यक समाधि
चित की एकाग्रता
संघ
बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों का संगठन।
संघ में दो प्रकार के लोग होते हैं।
भिक्षु - सन्यास धारण करने के पश्चात।
उपासक - गृहस्थ जीवन में रहकर अनुयाई बने रहते हैं।
संघ में प्रवेश हेतु न्यूनतम आयु 15 वर्ष रखी गई।
शुरुआत में स्त्रियों का प्रवेश वर्जित था, किंतु बाद में स्त्रियों को संघ में प्रवेश दिया गया।
संघ में प्रवेश करने वाली पहली स्त्री प्रजापति गौतमी थी।
संघ में रोगी, पागल, सूदखोर, कर्जदार तथा राजा के सैनिकों को प्रवेश नहीं था।
बौद्ध ग्रंथ
त्रिपिटक
विनय पीटक (धम्म एवं संघ के नियम)
सूत पिटक (एनसाइक्लोपीडिया का बुद्धिस्म के नाम से प्रसिद्ध।)
अभिधम्म (प्रश्नोत्तर शैली में ज्ञान)
सुत पीटक में निम्न प्रकार से वर्गीकरण दिया गया है।
खुदक
A. धम्म पद
B. धेरी गाथा
अंगुतर
संयुक्त
दिर्ग
मिज्जम
विनय पीटक
इस प्रथम बौद्ध संगीति में निर्मित किया गया।
बौद्ध भिक्षु भिक्षणियों से जुड़े नियमों को बताया गया।
सुत पीटक
बौद्ध धर्म का संपूर्ण ज्ञान समाहित।
इसे बुद्ध धर्म की एनसाइक्लोपीडिया कहा जाता है।
इसमें पांच निकाय मौजूद है। जिनका वर्गीकरण ऊपर दिया गया था।
सबसे महत्वपूर्ण खुद्दक निकाय है।
इसमें 15 पदो का संकलन है।
महत्वपूर्ण ग्रंथों में धम्म पद व थेरीगाता है। इसमें जातक कथाएं (महात्मा बुद्ध के जन्म एवं जन्म के पूर्व की घटनाएं) भी सम्मिलित हैं।
धम्म का बौद्ध धर्म में वही स्थान है जो वैदिक धर्म में गीता का स्थान है।
अभिधम्म पिटक
सबसे नया अंतिम रूप से जोड़ा गया पिटक।
इसे तृतीय बौद्ध संगिती में जोड़ा गया।
इस पिटक में प्रश्नोत्तर शैली में धर्म को समझाया गया है।
अन्य ग्रंथ
अश्वघोष द्वारा बुद्ध चरित्र (जीवनी) लिखा गया।
इसे बौद्ध धर्म की रामायण कहा गया
एशिया का प्रकाश स्तंभ (द द लाइट ऑफ़ एशिया) यहां ग्रंथ सर एड्रिन अश्नोल्ड द्वारा लिखा गया।
बौद्ध महा संगीतिया
प्रथम बौद्ध संगीति
समय 483 ईसा पूर्व
स्थान राजगृह बिहार
राजा अजात शत्रु (हर्यक वंश)
अध्यक्ष महा कश्यप
कार्य दो पिटकों का निर्माण।
दूसरी बौद्ध संगीति
समय 383 ईसा पूर्व
स्थान वैशाली
राजा कालाशोक (शिशुनाग वंश)
अध्यक्ष सबकमीर
कार्य बौद्ध धर्म को दो भागों में बांट दिया।
स्थावीर
महासंगिक
तीसरी बौद्ध संगीति
स्थान पाटलिपुत्र
राजा अशोक (मौर्य वंश)
अध्यक्ष मोगली पुत्र तीस्म
कार्य धम्म के नियम, कठोर अभिधम्म पिटक
चतुर्थ बौद्ध संगीति
समय 70 से 80 ई के मध्य।
स्थान कुंडलवन कश्मीर
राजा कनिष्क (कुषाण वंश)
अध्यक्ष वसुमित्र
उपाध्यक्ष अश्वघोष
कार्य बौद्ध धर्म दो संप्रदाय में बट गया।
हिनयान (रूढ़िवादी परंपरावादी)
महायान
महायान में महात्मा बुद्ध को भगवान मानकर पूजने लगे।
महात्मा बुद्ध की मृत्यु
483 ईसा पूर्व कुशीनगर उत्तर प्रदेश में।
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बौद्ध धर्म क्या है स्पष्ट कीजिए?
बौद्ध धर्म को विभिन्न रूप से एक धर्म, एक दर्शन, या बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित विश्वासों और प्रथाओं के एक समूह के रूप में समझा जाता है, या "जागृत व्यक्ति" - यह उपाधि भारतीय आध्यात्मिक साधक सिद्धार्थ गौतम को 2,600 साल से अधिक पहले ज्ञान प्राप्त करने के बाद दी गई थी।
बौद्ध धर्म की स्थापना कब हुई और किसने की थी?
बौद्ध परंपरा के अनुसार, शाक्यमुनि (जिसका अर्थ है "शाक्य वंश के ऋषि") बौद्ध धर्म के संस्थापक हैं (उन्हें कभी-कभी "सिद्धार्थ गौतम" भी कहा जाता है)। शाक्यमुनि का जन्म लगभग 490 ईसा पूर्व एक शाही परिवार में हुआ था जो हिमालय की तलहटी में एक महल में रहता था।
बौद्ध धर्म के रचयिता कौन थे?
बौद्ध धर्म का इतिहास गौतम बुद्ध से आरंभ होता है। बुद्ध शुद्धोधन के पुत्र थे। उन्हीं की शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म की नींव पड़ी।
बौद्ध धर्म कितने प्रकार के होते हैं?
बौद्ध धर्म को सुरक्षित रूप से दो व्यापक शाखाओं में विभाजित किया जा सकता है: हीनयान और महायान। हीनयान प्राचीन भारत में मूल बौद्धों और उन शुरुआती परंपराओं के समकालीन अनुयायियों को संदर्भित करता है। महायान बाकी सब को संदर्भित करता है, और इसमें वज्रयान बौद्ध धर्म शामिल है जिसे उचित रूप से महायान का एक उपसमूह माना जाता है।
भारतीय इतिहास के संबंध में विभिन्न जानकारी अपडेट की जाती है। इसमें भारतीय इतिहास से संबंधित विभिन्न विषयों को एक साथ अथवा पृथक रूप से उपलब्ध करवाया गया है। नोट्स, शॉर्ट नोट्स और मैपिंग के द्वारा विस्तृत अध्ययन करवाया जाता है। क्वीज टेस्ट के माध्यम से अपनी तैयारी पर रखने का बेहतरीन अवसर। आज ही अपनी तैयारी को दमदार बनाने के लिए पढ़िए भारतीय इतिहास।
वैदिक संस्कृति और वैदिक सभ्यता
वैदिक संस्कृति और वैदिक सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के पश्चात भारत में एक नई संस्कृति वैदिक संस्कृति का प्रारंभ हुआ।
वैदिक संस्कृति के लोगों को वैदिक आर्य कहा गया।
वैदिक आर्य का शाब्दिक अर्थ होता है श्रेष्ठ अथवा कुलीन।
वैदिक आर्यों के मूल स्थान को लेकर विद्वानो में प्रमुख मतभेद हैं।
सभी विद्वान वैदिक आर्यों का मूल स्थान अलग-अलग मानते हैं।
इस संदर्भ में मैक्समूलर का प्रचलित मत, जो यह कहता है कि वैदिक आर्यों का मूल स्थान मध्य एशिया है।
भारतीय विद्वान बाल गंगाधर तिलक के अनुसार वैदिक आर्य उत्तरी ध्रुव से आए हैं।
वैदिक आर्यों ने भारत में खैबर दर्रे से प्रवेश किया तथा सिंधु तथा उसकी सहायक नदियों के किनारे बस्तियां स्थापित की।
सप्त सैंधव प्रदेश
सात नदियों के आसपास का क्षेत्र।
सिंधु नदी (सिंधु)
सरस्वती नदी (सरस्वती वर्तमान में घग्गर के नाम से जानी जाती है।)
रावी नदी (पुरुषणी)
चेनाब नदी (अश्किनी)
झेलम नदी (विस्तता)
सतलज नदी (शूतुद्री)
व्यास नदी (विपाशा)
वैदिक समाज पूर्ण रूप से वेदों पर आधारित था।
वेद शब्द संस्कृत की विद् धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है जानना।
वेदों का संकलन कृष्ण देपायन वेदव्यास ने किया था।
ऋग्वेद सबसे पुराना वेद है।
ऋग्वेद विश्व का सबसे प्राचीन तथा प्रामाणिक ग्रंथ है।
ऋग्वेद के तीसरे मंडल में गायत्री मंत्र है। यहा गायत्री मंत्र सूर्य देव (सवितृ देव) को समर्पित है। ऋग्वेद का नया 9 वां मंडल सोमदेव पर आधारित है। सोमदेव वनस्पति के देवता है। ऋग्वेद का दसवां मंडल पुरुष सूक्त से संबंधित है।पुरुष सूक्त में समाज के चार वर्णों का उल्लेख है।
चार वर्ण
ब्राह्मण
क्षत्रिय
वैश्य
शुद्ध
यजुर्वेद
यज्ञ की क्रिया विधि से संबंधित।
यजुर्वेद को दो भागों में विभक्त किया गया है।
1 . गद्य भाग (कृष्ण यजुर्वेद)
पद्य भाग ( शुक्ल यजुर्वेद)
यजुर्वेद का पाठ करने वाला अधर्व्यु कहलाता है।
यजुर्वेद कर्मकांड प्रधान ग्रंथ है।
सामवेद
सामवेद में साम का तात्पर्य गायन से लिया गया है।
सात स्वरों को पहली बार सामवेद में उल्लेखित किया गया।
भारतीय संगीत का जनक सामवेद को कहा जाता है।
सामवेद में 1603 ऋचाएं हैं। इसमें से 99 वी को छोड़कर शेष सभी ऋचाएं ऋग्वेद से ली गई है।
सामवेद का पाठ करने वाला पंडित उदगाता कहलाता है।
अथर्ववेद
अथर्ववेद में अथर्व का अर्थ होता है पवित्र जादू।
यह सबसे नया तथा भिन्न वेद है।
अथर्ववेद में 20 कांड तथा 711 सूक्त तथा 6000 मंत्र समाहित हैं।
अथर्ववेद अंधविश्वासों से भरा वेद है।
इसमें राजभक्ति, रोग निवारण, परिणय गीत तथा जादू टोनो का उल्लेख किया गया है।
इसकी ज्यादातर ऋचाएं दुरात्मा तथा प्रेत आत्माओं पर आधारित है।
उपवेद
वेदों को सही ढंग से समझने हेतु उपवेदों का निर्माण किया गया है।
उनकी रचना समय-समय पर विभिन्न संत मुनिया द्वारा की गई थी।
ऋग्वेद, आयुर्वेद, धन्वंतरी (चिकित्सा)
यजुर्वेद, धनुर्वेद, विश्वामित्र (युद्ध कला)
सामवेद, गंधर्ववेद, भरत मुनि (संगीत व अन्य कला)
अथर्ववेद, शिल्प वेद, विश्वकर्मा (भवन निर्माण कला)
ब्राह्मण ग्रंथ
वेदों को गद्य रूप में समझने हेतु ब्राह्मण ग्रंथों की रचना की।
ब्राह्मण ग्रंथों के माध्यम से हम वेदों का सार समझ सकते हैं।
हर वेद के अलग-अलग ब्राह्मण ग्रंथ रचित किए गए हैं।
ऋग्वेद, कोशितिकी एवं एतरेय यजुर्वेद, तेतरीय व शतपथ सामवेद, पंचविंश व षड़विष व ताडण्य महा। अथर्ववेद, गोपथ
ब्राह्मण ग्रंथ कर्मकांड पर आधारितहै।
इनमें कर्मकांड को अत्यधिक महत्व दिया गया।
सबसे महत्वपूर्ण ब्राह्मण ग्रंथ, शतपथ ब्राह्मण है।
शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ याज्ञवल्क्य ऋषि द्वारा लिखा गया।
आरण्यक
वे ग्रंथ जो वन या जंगल जैसे शांत वातावरण में बैठकर लिखे जाते हो।
इनका संबंध आत्मा, परमात्मा, जन्म, मृत्यु तथा पुनर्जन्म से होता है।
ब्राह्मण ग्रंथों का उपसहारात्मक अंश।
यह कर्मकांड विरोधी होते हैं।
इन्हें वन पुस्तक भी कहा जाता है।
आरण्यक ग्रंथों को ज्ञान मार्ग व कर्म मार्ग के मध्य का सेतु कहा जाता है।
उपनिषद
उपनिषद का तात्पर्य उस विद्या से है, जिसमें गुरु के समीप बैठकर ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
उपनिषदों की कुल संख्या लगभग 300 है। परंतु 108 उपनिषदों को प्रभाविकता प्रदान की गई है।
उपनिषद वेदों का अंतिम कर बताते हैं, इसीलिए इन्हें वेदांत कहा जाता है।
भारतीय दर्शनिकता का प्रमुख स्रोत उपनिषदों को ही बताया गया है।
प्रमुख उपनिषदों में वृहदारण्यक, जाबालोपनिषद, छादग्योपनिषद और मुण्डकोपनिषद प्रमुख है।
जाबालोपनिषद से आश्रम व्यवस्था ली गई है।
मुण्डकोपनिषद में भारत के आदर्श वाक्य ' सत्यमेव जयते' का उल्लेख हैं।
वेदांग
वेदों को सही से समझने तथा सही उच्चारण करने के उद्देश्य से वेदांगो का निर्माण किया गया है।
वेदांग संख्या में 6 है।
शिक्षा, उच्चारण के लिए
व्याकरण, विश्लेषण के लिए
निरुक्त, व्युत्पत्ति के लिए
कल्प, धार्मिक अनुष्ठान के लिए
छंद, छंद शास्त्र के लिए
ज्योतिष, खगोल विज्ञान के लिए
दर्शन
योग दर्शन, पतंजलि
वैशेषिक दर्शन, कणाद तथा उलुक
न्याय दर्शन, महर्षि गौतम
सांख्य दर्शन, कपिल मुनि
पूर्व मीमांसा, जेमिनिय
उतर मिमान्सा, बाद नारायण
पुराण
कुल 18 अध्याय
सबसे प्राचीन एवं प्रमाणिक मत्स्य पुराण भगवान विष्णु के अवतारों का उल्लेख
महाकाव्य
रामायण, वाल्मीकि के द्वारा लिखा गया।
मूल रामायण में 6000 श्लोक थे।
गुप्त काल आते-आते यह 24000 हो गए।
इसीलिए रामायण को चतुर्विशती सहस्त्री संहिता भी कहा जाता है।
इस महाकाव्य में भगवान विष्णु के अवतार श्री राम का उल्लेख है।
रामायण में सात कांड है।
बालकांड
किष्किंधा कांड
अयोध्या कांड
युद्ध कांड
आरण्यक कांड
उतर काण्ड
सुंदरकांड
महाभारत
वेदव्यास द्वारा रचित
इसके लेखक गणेश जी थे।
महाभारत में 8800 श्लोक हैं।
जय संहिता के नाम से जाना जाता है।
24000 श्लोक, भारत के नाम से जानी गई।
100000 श्लोक महाभारत के नाम से जानी गई।
पांडवों और कौरवों के युद्ध का वर्णन
वैदिक सभ्यता का राजनीतिक जीवन
वैदिक समाज परिवार पर आधारित था।
परिवार पितृसत्तात्मक हुआ करते थे
परिवार का मुखिया कुलक अथवा कुलपति कहलाता था।
परिवारों को मिलाकर ग्राम, ग्राम को मिलाकर मुखिया ग्रामणी कहलाता था।
विभिन्न ग्राम मिलाकर विश का निर्माण करते थे।
मुखिया विशपति के नाम से जाना जाता।
विश को मिलाकर जन अथवा कबीले को निर्मित किया जाता। कबीले का प्रमुख राजा होता था।
प्रशासन चलाने हेतु "सभा व समिति" नामक संस्थाएं होती थी।
सभा कबीले के महत्वपूर्ण फैसला लिया करती थी। इसमें स्त्रियों की भी भागीदारी रहती थी। सभा में फैसला हेतु गणपूर्ति अथवा कोरम आवश्यक था।
समिति मिलकर राजा का चुनाव करते तथा धार्मिक व सैन्य मामलों हेतु विदध नाम की संस्था थी।
ऋग्वेद में दशराज्ञ के युद्ध का वर्णन देखने को मिलता है।
इस युद्ध में कुश्तू परिवार के राजा भरत के खिलाफ कबिले ने युद्ध किया था।
यह युद्ध रावी नदी (पुरूषेणी) के किनारे लड़ा गया।
कुछ बड़े कबीलों के नाम
पुरु
यद
तुर्वश
अनु
दूंधु
कुछ छोटे कबीलों के नाम
अलील
पक्त
भलाल
शिव
विषाणिन
सामाजिक जीवन
वैदिक समाज चार वर्णों में बात हुआ था।
ब्राह्मण
क्षत्रीय
वैश्य
शूद्र
आश्रम व्यवस्था
0 से 25 वर्ष - बाल आश्रम
26 से 50 वर्ष - गृहस्थ आश्रम
51 से 75 वर्ष - वानप्रस्थ आश्रम
76 से 100 वर्ष - सन्यास आश्रम
जाबालोपनिषद में आश्रम व्यवस्था का उल्लेख किया गया है जो उक्त प्रकार का है।
विवाह के प्रकार
ब्रह्म विवाह - कोई दहेज नहीं।
देव विवाह - पुरोहित
आर्ष विवाह - लड़की के पिता को एक बैल अथवा गाय देनी होती है।
प्रजापात्य विवाह - वर्तमान में प्रचलित
गंधर्व विवाह - लव मैरिज
राक्षस विवाह - कन्या मूल्य (दापा)
असुर विवाह - लड़की अपहरण
पेशाच विवाह - पहले बलात्ससंग उसके पश्चात विवाह
सामाजिक जीवन में समाज में स्त्रियों की स्थिति
स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी।
स्त्रियां धार्मिक अनुष्ठान, सभा इत्यादि में भाग लेती थी।
कई विदुषी महिलाओं का उल्लेख मिलता है। जैसे अपाला, घोषा, विश्वारा, गार्गी।
विधवा विवाह तथा नियोग का उल्लेख मिलता है।
सती प्रथा का सकारात्मक उल्लेख मिलता है।
समाज में लोग सर्वाहारी थे। यह लोग शाकाहार तथा मांसाहार दोनों का उपयोग करते थे।
सिर्फ नमक व मछली का उपयोग नहीं किया जाताथा।
घी में पके हुए मालपुए - अपूपम धर्तव्रतनम
दही में डाला सत्तू - करम्भ
दूध में चावल व शक्कर - क्षीर पाक
आर्य सूती व ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे।
महिला तथा पुरुष दोनों आभूषण पहना करते थे।
इसमें प्रमुख रूप से सोना, चांदी, तांबा, लोहा का उल्लेख मिलता है।
इनका पसंदीदा पे पदार्थ सोम रस था। सोमरस वनस्पतियों से निर्मित होता था।
आर्थिक जीवन
वैदिक आर्यों का प्रमुख कार्य था, पशुपालन।
संपत्ति का निर्धारण पशुओं पर होता था।
कृषि भी करते थे।
गाय का धार्मिक महत्व था।
गाय को अधन्या माना गया।
गाय पर कई शब्द भी देखे गए हैं। जैसे गव्यति (दूरी मापने का पैमाना), गोधूली (शाम का समय), गौमत (धनी व्यक्ति)।
आभूषण का कार्य होता था। सोने के हार के लिए निष्क शब्द आया है। निष्क का उपयोग मुद्रा के लिए भी किया गया।
धार्मिक जीवन
वैदिक समाज में 33 कोटी देवी देवताओं का उल्लेख है।
पूर्व वैदिक काल में इंद्र, वरुण, अग्नि तथा सोम को महत्वपूर्ण बताया गया है। परंतु धीरे-धीरे इनकी महता कम हुई तथा विष्णु के महता बढ़ गई।
देवी देवताओं को प्रसन्न करने हेतु धार्मिक अनुष्ठान तथा कर्मकांड करते थे।
पंच महायज्ञ का उल्लेख मिलता है। जैसे ब्रम्ह यज्ञ, भूत यज्ञ, नृप यज्ञ, पितृ यज्ञ और देव यज्ञ।
उत्तर वैदिक काल आते-आते धार्मिक कर्मकांड बढ़ गए।
सभा और समिति लुप्त हो गई।
राजा का पद शक्तिशाली और वंशानुगत हो गया।
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वैदिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं?
वैदिक काल प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक काल खंड है, जिस दौरान वेदों की रचना हुई थी। वेदों से प्राप्त जानकारी के आधार पर इसे वैदिक सभ्यता का नाम दिया गया था। वैदिक सभ्यता आर्यों द्वारा स्थापित एक ग्रामीण सभ्यता थी। वैदिक संस्कृति सिन्धु सभ्यता के बाद अस्तित्व में आई थी।
वैदिक संस्कृति का दूसरा नाम क्या है?
ऋग्वेद की वैदिक संस्कृत, जिसे ऋग्वैदिक संस्कृत कहा जाता है, सब से प्राचीन रूप है।
वैदिक संस्कृति को कितने भागों में बांटा गया है?
वैदिक काल को ऋग्वैदिक या पूर्व वैदिक काल तथा उत्तर वैदिक काल में बांटा गया है।
वैदिक संस्कृति का अर्थ क्या है?
वेद पवित्र आध्यात्मिक ज्ञान के लिए एक शब्द है। वेदों को सबसे पहले मौखिक रूप से प्रसारित किया गया था। यह माना जाता था कि ये वेद प्रामाणिक थे क्योंकि उनमें सभी वेदों में सबसे अधिक आध्यात्मिक ज्ञान था। इन वेदों के आधार पर, हम प्रारंभिक आर्यों के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, और इस संस्कृति को वैदिक संस्कृति के रूप में जाना जाता है।
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